ANUJ KUMAR

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तुम्हारी आंखों से

 ' तुम्हारी आंखो से '

क्यों धमक पड़ती 
हो आखिर तुम
एक कविता बनकर,

कर देती हो मजबूर
कलम उठाने पर,
मुझे एक यातना से 
पड़ता है गुजरना...

उन यादों को 
फिर संजोना,
तुम्हारी आंखो 
के दर्पण में खुद की तस्वीर
देखना,
 हृदय के भावों को
मूर्त कर 
उन्हें शब्दों के कपड़े पहनाना
अब नहीं 
होता..

आंसू अब आंखों
से नहीं 
मेरी कलम से निकलते हैं,
मगर कागज 
सूखा का सूखा,
गर 
तुम पढ़ो
करूणा में भीगे 
मेरे शब्दों को कभी,

तो मेरी कलम के आंसू भी,
निकलेंगे
तुम्हारी आंखों से...

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5 Comments

Apeksha Mittal

27-Aug-2021 05:45 AM

बहुत अच्छा

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ANUJ KUMAR

28-Aug-2021 02:54 PM

शुक्रिया

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ANUJ KUMAR

05-Oct-2021 12:22 PM

धन्यवाद

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kapil sharma

27-Aug-2021 03:43 AM

👏👏👏👏

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ANUJ KUMAR

27-Aug-2021 05:14 AM

शुक्रिया

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